अधूरे प्यार की कविता: ख़यालों में मैं, तुमसे रोज मिलता हूँ, प्यार का इज़हार भी हर रोज करता हूँ, हकीकत में तुम, किसी और के हो, ये मालूम है मुझे, इसके बावजूद भी, तुमसे प्यार मैं, बेशुमार करता हूँ.
NO:-2
तेरे जीवन में कभी अर्चन न बनूँगी, तेरे सपनो के बिच न पडूँगी, अगर कभी कोई परेशानी आयी हो तो कहना, तुझे छोड़ने से पीछे नहीं हटूँगी।
अधूरे प्यार की कविता
NO:-3
आप की यादें (कविता का शीर्षक), चाँदनी रात है, एक प्यारी सी बात है, हाथों में चाय का प्याला है, आपके आगमन, से जीवन में उजाला है, यही बैठे हुए, चाय की चुस्कियाँ लगाते हैं, जबभी आपका खयाल आता है, मन ही मन मुस्कुराते हैं ।
NO:-4
यूँ तारों का टिम-टिमाना, आपकी आखें याद दिलाता है, चाँद पर नज़र जाए तो, आपका चेहरा नज़र आता है, कुछ तो बात है, इस चाँद की चाँदनी में, आपकी झलक दिखाता है, मेरा दिल भी बहलाता है ।
NO:-5
काश ऐसा होता, ये दूरियाँ ही न होती, इस चाँदनी रात में, मेरे साथ आप होती, हाथों में आपका हाथ होता, जीवन में, आपका साथ होता, एक साथ चलते इस जीवन की राह पर, जीना भी साथ होता और, मरना भी साथ होता ।
सच्चा प्रेम कविता
सच्चा प्रेम कविता: टूट चूका हूँ बिखरना बांकी है, बचे कुछ एहसास जिनका जाना बांकी है, चंद सांसें है जिनका आना बांकी है, मौत रोज मेरे सिरहाने खड़ी हो पूछती है, भाई आ जा, अब क्या देखना बांकी है I
NO:-7
बेवजह भी मैं तुझे याद करने की वजह ढून्ढ लेता हूँ, बेमकसद भी मैं तुझसे मिलने का, मकसद ढून्ढ लेता हूँ, बदनसीब मैं, तुझे चाहने के लिए नसीब ढूंढ लेता हूँ, बेसब्र सा मैं तुझसे मिलने के लिए सब्र ढूंढ लेता हूँ
NO:-8
“तुम जैसे कोई हो नदी चंचल सी, मैं गहरा सा एक समंदर हूँ“” “तुम किसी शायर की कल्पना जैसी, मैं अल्फ़ाज़ों का खेल हूँ“”“ तुम बारिशों में आती खुशबु सी, मैं तूफानों में पला शेर हूँ“”
प्यार का इजहार कविता
प्यार का इजहार कविता: जो शब्दों में अगर मैं बयां कर पाऊं चाहत कभी, हर यादें वो तुमसे जुड़ी, हर वो बात उन यादों से जुड़ी, उन यादों से, तेरी बातों से, जुड़ा हुआ हूँ मैं अब भी, जो लिख पाऊं मैं उन जज्बातों को,, शब्द बनकर, दिल की कलम में अब इतनी ताकत नहीं , कोशिश जारी है मेरी, वो मकसद समझने की, जो ज़िंदगी सिखलाना चाहती थी मुझे,
शिकायत तुमसे नहीं, तुम तो एक जरिया बनी, जाने क्या सिखला कर गई हो तुम, तुमसे नहीं, गर ज़िंदगी मिले तो पूछूँ कभी, ग़मों के ढेर में एक नाम तुम्हारा भी जुड़ा है बस, ऐ ज़िंदगी क्या बस इतनी ही थी चाहत तेरी I, नाउम्मीदी, भरी ही सही, दिल में है मगर एक चाहत अभी भी, जो थोड़ी हो आहट तेरे आने की कोई,,
नासमझी है मेरी, मगर, देती है मुझे ये राहत थोड़ी, सबक का जरिया बना कर भेजा था जिसे ज़िंदगी ने, जो लौट आये मुझमे मेरा हिस्सा बन कर कभी, देखे वो यादों का कमरा, जो अब तक सजा कर रखा है मैंने, उसकी यादों से जुड़ी, हर बाद उन यादों से जुड़ी, जो शब्दों में अगर मैं बयां कर पाऊं चाहत कभी I
NO:-10
बाळ जेव्हा तू मला धरून ठेव बाळा, जेव्हा तू मला धरतोस तेव्हा माझ्या भावना स्पष्ट होतात आम्ही इथे घालतो तेव्हा आपण मला किती म्हणायचे आहे. मी तुझ्या हृदयाचा ठोका माझ्या स्वतःसह तालमीवर ऐकतो, प्रत्येक पौंडसह तो तापमानवाढ आवाज आपण दर्शविलेल्या प्रेमामुळे मला सुरक्षित ठेवते. बाळा, जेव्हा तू मला हातांनी स्पर्श करतेस तेव्हा खूप मऊ पण मजबूत,
मी जिथे आहे तिथे तू मला उबदार मिठीत लपेटले आहेस. रात्रभर तू मला जवळ धर आणि मला सांत्वन दिलेस जोपर्यंत आपण दिवसाच्या पहिल्या चिन्हेकडे डोळे उघडत नाही. बाळा, तू आपला दिवस सुरु करण्यापूर्वी तू मला चुंबन घेताना, तू ज्या आनंदाने माझ्या हृदयात आणलेस ते शब्द कधीही बोलू शकत नाहीत.
तुम्ही माझे आयुष्य खूप सुंदर, आश्चर्यकारक आणि नवीन बनविले आहे. आपण माझ्या आशा आणि स्वप्ने आहात. आपण माझे सर्वकाही आहात; मी तुमच्या प्रेमात आहे.
NO:-11
तुम्हारी याद दिल से जाती नहीं (कविता का शीर्षक) तुम से मिलने की आशा बहुत है मगर, तुम से मिलने कि रुत है कि आती नहीं| करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर, एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
प्रेम कि राह में मुझको ले चली| वो हाथ पकड़ के अपनी गली|| मैं तो चलता रहा उसी राह पर मगर, अब मेरे पीछे वो है कि आती नहीं | करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर, एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
साथ चलने की चाहत तुम्हारी ही थी| साथ जीने-मरने की कसमें भी तुम्हारी ही थी||
राह तकता हूँ मैं अब तक उसकी मगर, वो है कि इस राह आती नहीं | करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर,एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
क्या हुई थी गलती हमें समझाओ तो| दूर जाने की वजह हमें बतलाओ तो || हम पूछते रहे उन से मगर, वो है कि कुछ भी बताती नहीं | करूँ कितनी भी कोशिश दिल बहलाने की मगर, एक तेरी याद दिल से है कि जाती नहीं ||
-कुलेश्वर जायसवाल (कवि )
प्रेम विरह कविता
प्रेम विरह कविता: कहते हैं ज़िन्दगी का दूसरा नाम इम्तिहान हैं पर क्यूँ, हर इम्तिहान में कोई न कोई क़ुर्बान हैं, अक्सर टूटे सपनो से बिखर जाया करते है वो लोग… जो भी यहां जीवन के सच से रहते अनजान है, अब सपने संजोने वाली उन आखों का क्या कसूर नादान दिल की वो तो बस एक छवि, एक पहचान है
ज़िन्दगी समझते हैं कुछ लोग चंद पलों को इश्क़ में कहाँ रहता ज़मीन पर कोई इंसान है, जब मिलती है सजा ज़िन्दगी में, किसी से दिल लगाने की, लगे बोझ खुदा का वो तोहफा, जिसका नाम जान है, ज़िन्दगी कितना भी दे गम, हंस के जी लो यारों मौत भी आज तक कहाँ हुयी किसी पे मेहरबान है
जीवन सुख दुःख का एक घूमता चक्र है जो ना समझा ये, वो नादान है, वो नादान है.
NO:-13
एक सहारा मिला था, जीवन में आगे बढ़ने के लिए आज वो भी छूटा सा नज़र आ रहा हैजो बनाया था कभी सपनों का महल, आज वो भी टूटा से नज़र आ रहा है जीवन की नदी पार करने का, कोई किनारा नहीं दिखाई पड़ता, बस, चारों ओर समंदर नज़र आ रहा है,
उलझ गया है पंक्षियों का आशियाना,, हर तरफ बस बंजर ही नज़र आ रहा है, जिंदगी तो तेरे साथ थी मेरे यार,, अब तो मौत ही हमसफ़र नज़र आ रहा है
-निहारिका चौधरी (कवयित्री)
NO:-14
पहले दोस्त, दोस्त की मदद करता था दोस्ती के लिए, आज दोस्त, दोस्त की मदद करता है अक्सर अपने स्वार्थ के लिए, पहले दोस्त पैसा दोस्त को दे देता था हमेशा के लिए, और दोस्त कैसे भी करके लौटाता था, मन के सुकून के लिए, आज कल दोस्ती तो लगता है,
जैसे नाम के लिए रह गयी हैं, कितना सब बदल गए हैं और कितनी सोच भी बदल गयी हैं, और कहते हैं अपने दोस्त को जो उधार दे वो मूर्ख कहलाये, और जो उधार वापस करे, वो उससे भी बड़ा मुर्ख कहलाये, दोस्ती का नाम बदनाम हुए जा रहा हैं, फिर भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा हैं
माहौल दिन-ब-दिन ख़राब होता जा रहा हैं, इंसान का इंसान से विश्वास उठता जा रहा हैं, बदलता माहौल देख बहुत दुःख हो रहा हैं, देखो दोस्तों इंसान कहा से कहा जा रहा हैं |
Poetry By ~ BANSI DHAMEJA
NO:-15
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की। आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है। अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे। क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे। ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है, पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है!!
NO:-16
आँखें जो खुली तो उन्हें अपने करीब पाया ना था, कभी थे रूह में शामिल आज उनका साया ना था, बेपनाह,मोहब्बत की जिनसे उम्मीदें लिये बैठे थे, उनसे तन्हाइयों की सौगातें मिलेंगी बताया ना था, एक हम ही, कसीदे हुस्न के हर बार पढ़ते रहे पर,
उसने तो कभी हाल-ए-दिल सुनाया ना था, वो फिरते रहे दिल में ना जाने कितने राज लिये , हमने तो कभी उनसे जज्बातों को छुपाया ना था , जाने क्यों हम बेवजह मदहोश हुआ करते थे, जाम आँखों से तो कभी उसने पिलाया ना था, मीलों कब्ज़ा कर बना रखा था सपनों का महल पर,
उसने वो ख़्वाब कभी आँखों में सजाया ना था, धड़कन ‘मौन’ हुई अब एक आह की आवाज़ है, शिकवा क्या उनसे जिसने कभी अपना बनाया ना था
-अमित मिश्रा
NO:-17
कभी तो चाँद असमान से उतरे और आम हो जाये, तेरे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाये, अजब हालत हुए की दिल का सौदा हो गया, मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलम हो जाये, मैं खुद भी तुझसे मिलने की कोशिश नहीं करूँगा, क्योंकि नहीं चाहता कोई मेरे लिए बदनाम हो जाये, उजाले अपनी यादों के मेरे साथ रहने दो, जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये..
NO:-18
आई फ़ोन है उसके पास जीन्स उसकी लेविस स्ट्रॉस लिपस्टिक और मेकप पोत कर निकलती घर से सज-धज कर मुझको वो खूब थी भा गयी जब से देखा नींद उड़ गयी मैंने भेजा फ्रेंड रिक्वेस्ट कर दिया उसने वो रिजेक्ट उससे बात कैसे बढ़ाऊँ कुछ मैं ये समझ न पाऊं क्या उसको भेजूं गुलाब या दे दूँ कोई रोचक किताब रोज़ हूँ मैं सोचता रह जाता दिल की बात बता न पाता -अनुष्का सूरी